Pregnancy

पहला भाग: – गर्भावस्‍था (Pregnancy) क्‍या है और इसकी अहमियत क्या है?

  • यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह एक अद्भुत एवं विचित्र अवस्‍था है जिसमें एक शरीर के अंदर दूसरा शरीर जीवंत रूप ले रहा होता है। यह स्‍त्री के जीवन का अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण पड़ाव होता है।
  • इन दोनों के जीवन में एक अद्भुत संतुलन होता है एक की दुनिया बदलने वाली है और एक नई जिंदगी दुनिया में आने वाली है।
  • यह अवस्‍था बहुत महत्‍वपूर्ण है, दोनों के लिए मां के लिए भी और बच्‍चे के लिए भी। इस अवस्‍था में मां और गर्भ दोनों एक-दूसरे से शारीरिक एवं मानसिक रूप से जुड़े रहते है। यह जुड़ाव गर्भावस्‍था के पहले दिन से ही शुरू हो जाता है।
  • और जैसा कि मैंने बताया कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया (Natural Process) है और यह व्‍यवस्‍था प्रकृति के द्वारा बनाई गई है तो इस व्‍यवस्‍था को सुचारू रूप से परिपालन करने के लिए हमारे शास्‍त्रों में कई महत्‍वपूर्ण नियम भी बताए गये जिनका सदियों पालन होता गया परन्‍तु आज के नई पीढ़ी  इस नियम को भूल गए और  बाहर से आयी नियमों का पालन करने लगे हैं और उसका परिणाम ये हो रहा है कि हम इसे एक बीमारी के रूप में देखने लगे है। छोटी-छोटी तकलीफों में डॉक्‍टरों के पास चले जाते हैं फिर डॉक्‍टर तरह तरह की दवाइयों देता है और तरह-तरह के जांच करवाता है जिसका मां एवं शिशु दोनों पे बूरा प्रभाव पड़ता है।
  • पहले भी तो बच्‍चें होते ही थे 50-100 साल या 1000-2000 साल या उससे भी पहले तब कैसे बच्‍चे पैदा होते थे? और पहले के बच्‍चे तो आज के बच्‍चों से कई ज्‍यादा ताकतवर, बुद्धिमान, बिना बीमारी के और स्‍वस्‍थ पैदा हाते थे और मां की डिलीवरी भी नॉर्मल हुआ करती थी। पीड़ा तब भी होती थी परन्‍तु उस समय की महिलाएं मानसिक और शारीरक रूप से मजबूत हुआ करती थी ऐसा क्‍या करती थी वो ? वो उन नियमों का पालन किया करती थी।
  • जो कि आज बिल्‍कुल नहीं किया जाता है या यूं कहे तो शहरों में रहने वाले महिलाओं को उस बारे में पता ही नहीं है उन्‍हें तो बस उतना ही पता है जो डॉक्‍टर उन्‍हें बताते हैं या उन्‍हें डराते हैं कि ऐसा हो जायेगा वैसा हो जायेगा हम जोखिम नहीं लेंगे।
  • पहले हमारे स्‍वास्‍थ्‍य की चाबी हमारे हाथों में हुआ करती थी तो हम स्‍वस्‍थ होते थे हब हमने इसकी चाबी दूसरों के हाथों में दे दी है तो हम और बीमार है।

पहले एक दाई मां(Midwives) हुआ करती थी जो गर्भधारण से जन्‍म तक जच्‍चा और बच्‍चा दोनों की देखभाल करती थी। इन महिलाओं को दाई मां (Midwife) कहते है। प्रसव पीड़ा के दौरान शिशु के सकुशल जन्‍म लेने में Midwife की बहुत ही महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है। जिन्‍हें हम साधारण महिला समझते है उनका आपके जीवन में कितना बड़ा योगदान होता है। 

अभी भी कई गांवों में आज भी ऐसी महिलाएं हैं जो अपने अनुभव से ‘प्रसव’को आसान बनाती है और माताओं और शिशुओं को सु‍रक्षित रखने का काम करती हैं।

    • गर्भवती महिलाओं की शारीरिक और मानसिक रूप से देख भाल करना तथा परामर्श देना।
    • प्रसव (Childbirth) के दौरान महिलाओं की मदद करना तथा चिकित्‍सीय परामर्श को कम करने की कोशिश करना।
    • या जिन महिलाओं को ‘डॉक्‍टर’ या ‘वैधों’की मदद चाहिए होती तो उन्‍हें डॉक्‍टर के पास जाने की सलाह देना।अति आवश्‍यकता पर ही डॉक्‍टर के पास जाने को सलाह देती थी।

उन्‍होंने इसकी कोई पढ़ाई नहीं कि बल्कि उनके पास सालों की अनुभव होती है वो इस क्षेत्र में सालों से अपनी अहम भूमिका निभा रही होती है। परन्‍तु आज के नए दौर में हम इनकी महत्‍वत्ता को भूल गए हैं या फिर हमनें इस पर अपना विश्‍वास कम कर दिया है और डॉक्‍टरों पर ज्‍यादा विश्‍वास करने लगे हैऔर उन पर ही निर्भर हो गए हैं क्योंकि हमें लगता है उनके पास डिग्रि‍यां और अनुभव है परंतु सत्य तो यह है कि ‘दाई मां’ जैसा अनुभव उनके पास नहीं हो सकता। आजकल के डॉक्टर तो सिर्फ पैसे कमाने में लगे हैं नॉर्मल डिलीवरी के जगह सिजेरियन डिलीवरी आजकल सामान्य  हो गया है।

दुसरा भाग: – क्या गर्भावस्था नियोजन (Planning) के होना चाहिए या बिना नियोजन (Planning) के?

  • अगर आप चाहते हैं आपका बच्चा स्वस्थ हो, तंदुरुस्त हो, मेधावी हो इंटेलिजेंट हो, उनका IQ बहुत अच्छा रहे, समाज में अच्छा काम करें आदि। तो उसके लिए गर्भावस्था का नियोजन अति आवश्यक है। बिना नियोजन ज्यादातर बच्चे गलत आचरण वाले होते हैं।
  • एक रिसर्च से पता चला है कि गलत आचरण वाले बच्चे ज्यादातर बिना नियोजन के पैदा हुए हैं। (अकस्मात).
  • जिस प्रकार आप बहुत से कार्य के लिए नियोजन करते हैं:- जैसे घर बनाने के लिए पैसे जमा करने का नियोजन, ऐसे ही हम नौकरी के लिए नियोजन करते हैं तो ऐसा ही नियोजन आपको अपने बच्चे के लिए करना होगाअगर आप अपने बच्चे को स्वस्थ, तंदुरुस्त, मेधावी, इंटेलिजेंट बनाना चाहते हैं तो।
  • तो इनमे से कुछ महत्वपूर्ण नियोजन आज मैं आपके साथ साझा करूंगा।

पहला नियोजन संयम का पालन करना

  • बिना संयम के अच्छे बच्चे नहीं हो सकते हैं संयम रखने का बहुत सरल तरीका है ज्यादा समय ब्रह्मचर्य का पालन करें। महिलाओं के लिए यह आसान है परंतु पुरुषों के मुकाबले। पुरुषों को संयम के साथ इसका पालन करना पड़ेगा। 

दूसरा नियोजन- चूने का प्रयोग: –

  • पुरुष एवं महिलाएं दोनों को चुने का इस्तेमाल नियमित रूप से करना चाहिए 1 ग्राम चूना (गेहूं के दाने के बराबर) 100ml गर्म पानी या 100ml जूस के साथ।

तीसरा नियोजन खान-पान

  • आपका भोजन सात्विक होना चाहिए माने हां शाकाहारी भोजन बिना सात्विक भोजन के आपके बच्चे तेजस्वी नहीं होने वाले। नियमित रूप से आपको मौसमी फल खाना है फल हमेशा सुबह खाली पेट में या फिर खाना खाने के 2 घंटे पहले खाएं या 2 घंटे के बाद खाएं।
  • मंदबुद्धि और विकलांग बच्चे उन माता-पिता को ज्यादा होते हैं जिनके शरीर में कैल्शियम बहुत कम होता है और कैल्शियम के लिए सबसे अच्छा है चुना तथा लाल मिट्टी उसमें भरपूर कैल्शियम और आयरन उपस्थित रहता है।

चौथा नियोजन शारीरिक श्रम

  • पत्नी के लिए श्रम ऐसा हो कि ज्यादा से ज्यादा उसके पेट के हिस्से में हलन चलन पैदा करें जहां  गर्भाशय होता है। जैसे सिलबट्टे  पेट चटनी पीसना।  इसी तरह कपड़े हाथ से धोना, रोटी हाथ से बनाना, चक्की चलाना 1 दिन में कम से कम 15 मिनट यह सबसे अच्छा श्रम होता है चक्की चलाने से नॉर्मल डिलीवरी होता है 8 महीने तक।
  • पुरुषों का श्रम: – हल चलाना/ यदि हल नहीं चला सकते तो सीढ़ियां चढ़ना और उतरना और यह भी नहीं कर सकते तो पैदल चलना एक अच्छा शरीर श्रम है पुरुषों के लिए। 1 दिन में 4 से 5 किलोमीटर पैदल चलना सबसे अच्छा  होता है और भी कई सारे नियोजन होते हैं लेकिन अगर इतना ही कर ले तो अच्छा।

गर्भवती से दो-तीन माह पूर्ण-

  • सुबह-शाम देशी गाय के दूध या गर्म पानी में एक चम्मच अश्वगंधा + शतावरी + मुलेठी जरूर खाएं। इससे एवं या अंडाणु विकसित होकर निकलेंगे तथा गर्भाशय बलवान होगा।

तीसरा भाग: – गर्भाधान (Fertilization)  के बाद का नियोजन (planning)।

पहला खान-पान का-

  • जिस प्रकार गर्भाधान के पहले आप का भोजन अच्छा होना चाहिए उसी प्रकार गर्भाधान के बाद आपका भोजन और अच्छा होते ही जाना चाहिए। इसके लिए आपको देसी गाय का दूध/ घी/दही/ मक्खन/ छाछ आदि यह जरूर खाना चाहिए। दूसरा आपको और आपके बच्चे को कैल्शियम की कमी ना हो तो चूना 1 ग्राम रोज खाना है  100 ग्राम दही में या गुड़ के साथ या सबसे अच्छा अनार के 100ml जूस में। अनार के जूस में सबसे ज्यादा आयरन होता है और चुने में सबसे ज्यादा कैल्शियम ताकि हर मां को गर्भाधान के समय इसकी हमेशा कमी  ना  हो। केले खूब खाना है केले में कैल्शियम होता है / तिल खा सकती हैं। कुल मिलाकर आप  गर्भाधान के समय ऐसी चीजें भरपूर खाएं जिसमें आयरन और कैल्शियम हो।
  • समय से भोजन और समय से आराम बहुत आवश्यक है –  समय से भोजन का मतलब आपका लंच 10:00 बजे सुबह तक हो ही जाना चाहिए और डिनर 5:00 से 6:00 बजे शाम तक हो ही जाना चाहिए। बीच में यदि भूख लगे तो फल खाना, फल का ताजा जूस पीना, गुड खाना, मूंगफली, तिल खाना।
  • एक भोजन से दूसरे भोजन के बीच 8 घंटे का अंतर होना चाहिए गर्भवती मां के लिए।
  • प्रातः बिस्तर छोड़ने के बाद मिश्री मिला हुआ पानी अवश्य पिए इससे महिलाओं को उल्टी एवं  जी-मचलाने की समस्या नहीं होगी।
  • पानी का ज्यादा मात्रा में सेवन करें एवं धीरे-धीरे पानी पिए। 

दूसरा शारीरिक श्रम-

  • पहले महीने से सातवें महीने तक थोड़ा-थोड़ा श्रम करते रहना है। जैसे चक्की चलाना 10 से 15 मिनट/ सिलबट्टे पर चटनी पीसना/ कपड़े धोना/ झाड़ू पोछा करना। जितना आप यह सब काम कर लेंगे हाथों से उतना आपके बच्चे के जन्म के समय सुकून रहेगा, तकलीफ कम होगी तथा दर्द कम होगा।
  • पेट पर पोषक तेल से अवश्य मालिश करें इससे बल मिलता है गर्भाशय को तथा  मांस-पेशियां शक्तिशाली होगी।
  • पैदल चलना फिरना तथा हल्के-फुल्के व्यायाम या योग अवश्य करना चाहिए। Deep breathing जरूर करें।

 तीसरा किन किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?

  • गर्भावस्था के समय बच्चे का पोषण बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जो जीवन भर नहीं हो सकता इसलिए गर्भावस्था के समय सबसे उत्तम पोषण देना चाहिए।
  • इस समय डाइटिंग नहीं करनी चाहिए।
  • भारी सामान ना उठाएं। 
  • हल्के और आरामदायक कपड़े पहने हील वाली सैंडल ना पहने नॉर्मल चप्पल पहने।
  •  यदि पहले गर्भपात की समस्या हुई हो तो आप गर्म तासीर वाले आहार ना ले। जैसे तेज मिर्च-मसाले/ सोने का आभूषण ना पहने इससे शरीर में गर्मी बढ़ती है चांदी का आभूषण पहन सकते हैं।
  • चाय, कॉफी, अल्कोहल, कोल्ड ड्रिंक, जंक फूड का उपयोग तुरंत बंद करें।
  • शरीर पर किसी प्रकार का केमिकल यूज ना करें जैसे: क्रीम, हेयर डाई इत्यादि। क्योंकि यह सूचित होकर रक्त में विकार उत्पन्न करते हैं जो मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक है।
  • तनाव या हताश (stress/frustration)से दूर रहें। इस से जुड़ी कोई बातें ना करें, ना  इस प्रकार के साहित्य पढ़े ना इस प्रकार के धारावाहिक देखें।
  • पेट के बल ना लेटे सीढ़ियां ना चढ़े। 
  • बिना आवश्यकता के हमेशा ही बेड रेस्ट ना करें आवश्यकता पड़ने पर ही आराम करें दिन में 1 घंटे का आराम अच्छा है।  रात को जल्दी सोए 10:00 बजे तक और सुबह जल्दी 5:00-6:00 तक उठ जाए।

चौथा मानसिक तनाव से बचने का नियोजन।

  • गर्भाशय के पूरे होने का समय 9 महीने 9 दिन 9 घंटे है अतः गर्भ के पहले दिन से गर्भ के आखिरी दिन तक मां को कोई मानसिक कष्ट नहीं हो इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है।
  •  मां के ऊपर थोड़ा सा मानसिक तनाव संतान के ऊपर 10 गुना असर करता है।
  •  इसकी  जिम्मेदारी पति के साथ साथ पूरे परिवार की होती है जिस मां के गर्भ के समय मानसिक त्रास होता है उसके बच्चे का स्वभाव बड़ा होने पर त्रास देने वाला हो जाता है।

पांचवा सकारात्मक व नकारात्मक विचारों का प्रभाव।

  • गर्भ धारण करने  के पहले महीने से बच्चे के जन्म तक मां के मन में हमेशा सकारात्मक विचार होना चाहिए। नकारात्मक कोई भी विचार ना आए।
  • नकारात्मक विचार जैसे- बच्चा विकलांग तो नहीं होगा पता नहीं बच्चा मंदबुद्धि तो नहीं होगा कहीं बच्चा कमजोर तो नहीं होगा कहीं ऐसा या वैसा तो नहीं होगा। उसके स्थान पर ऐसा विचार करना है कि यह बच्चा तेजस्वी होगा बलशाली होगा तपस्वी होगा तीव्र बुद्धि वाला होगा। इस तरह के सकारात्मक विचार सतत चलने चाहिए। क्योंकि जैसा विचार आप करते हैं उसी तरह के हार्मोन शरीर में बनते हैं और वही हारमोंस उस बच्चे के लिए पोषण का काम करते हैं मन में सकारात्मक विचार से उसका बच्चे पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • मां के मन में जैसा विचार आता है उसका असर बच्चे के गर्भ में 3 माह पूरा करते हैं बच्चे के ऊपर आने लगता है और जैसे-जैसे बच्चे के दिमाग का विकास होता है वैसे वैसे उस बच्चे पर सकारात्मक या नकारात्मक सोच का असर पड़ने लगता है।

छठा दवाइयां कितनी महत्वपूर्ण है?

  • जैसे कि मैंने आपको शुरुआत में बताया कि गर्भावस्था में मां को कई कष्ट और तकलीफ से गुजरना पड़ता है और बच्चे के जन्म  का समय तो है ही  असहनीय।
  •  इसी कारण से लगभग सभी धर्मों  ने मां को सर्वोच्च स्थान दिया है। मां का स्थान सबसे ऊंचा होता है और इसलिए मां को शास्त्रों में सबसे पवित्र माना गया है।
  •  परंतु अक्सर महिलाएं गर्भावस्था की प्राकृतिक पीढ़ियों के लिए दवाइयों का सेवन करती हैं और कुछ दवाएं डॉक्टरों द्वारा मरीज को अपने से 9 महीने तक जुड़ा रखने के लिए बेवजह दी जाती है। तो कुछ समय  रस्मो रिवाजन  दवाओं का चलन है। कुछ अनावश्यक दवाएं जिनका गर्भवती स्त्रियां सेवन करती हैं और गर्भ को  होने वाली हानियां पहुंचाती है।
  •  तो आज हम ऐसे कुछ सामान्य समस्याओं के लिए ली जाने वाली दवाइयों का प्राकृतिक विकल्प बताएंगे।
  1. उल्टी या जी-मचलाना (Morning Sickness)
    • प्राकृतिक विकल्प–  गर्भिणी को सुबह उठकर नाश्ता जल्दी  करना चाहिए। खाली पेट ना रहे। केले का सेवन अच्छा होता है या सीजनल फ्रूट्स उसे कम से कम एक-दो घंटे बाद खाना खा ले।
  2. अम्लता और जलन (Acidity & burning)
    •  प्राकृतिक विकल्प- देसी गाय का दूध( एंटासिड) होता है/ घी/ सलाद/ फल जैसे अमरुद से  इत्यादि भी लें।
  3. कब्ज (Constipation)
    • प्राकृतिक विकल्प-  इसबगोल, सलाद, पानी का ज्यादा सेवन, टहलना कब्ज का सर्वश्रेष्ठ उपचार है।
  4. कमर दर्द:  चौथे- पांचवें  माह के बाद यह सामान्य बात है तथा दर्द निवारक गोलियों का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए।
    • प्राकृतिक विकल्प-  तेल की मालिश, गरम पानी की बैग से सिकाई कुछ सरल योगासन  करें।

डॉक्टरों द्वारा रोगी को अपने से जोड़े रखने के लिए बेवजह दी जाने वाली दवाइयां:-

डॉक्टरों की माल प्रैक्टिस की वजह से गर्भनियों को कई तरह की दवाइयां बेवजह खानी पड़ती है । उनका कहना होता है कि इससे मां और बच्चा दोनों  हृष्ट-पुष्ट होंगे।

तो मेरा एक सवाल है कि इस दौर के बच्चों को डॉक्टर के हिसाब से सबसे ज्यादा शक्तिशाली होना चाहिए लेकिन आजकल के बच्चे मानव इतिहास के सबसे कमजोर बच्चे हैं और आजकल की माताएं मानव इतिहास की सबसे कमजोर माताएं फिर डॉक्टरों द्वारा दी जाने वाली अनावश्यक दवाओं का क्या औचित्य है? 

बेवजह दी जाने वाली दवाइयाँ  :

  1.  आयरन टेबलेट:- ध्यान रहे हाथों से आयरन को ऑपरेशन के लिए विटामिन सी महत्वपूर्ण है इसलिए गर्भिनी को आयरन के स्रोतों के साथ-साथ खट्टे फल भी खाना चाहिए जैसे आंवला नींबू संतरा मौसंबी खुबानी आदि। 
    • विकल्प-  गुड/ खजूर/ अनार/ चुकंदर/ कुर्बानी आदि। 
  2. कैल्शियम टेबलेट: – कैल्शियम टेबलेट लगभग सभी गर्भवती महिलाओं को हर डॉक्टर लेने की सलाह देते हैं क्योंकि अधिकतर लोगों की समझ में यह बात घर कर चुकी है कि गर्भावस्था में कैल्शियम की बहुत कमी हो जाती है और यह बिना टेबलेट की पूरी नहीं हो सकती तथा इन कैलशियम टेबलेट के कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है। वास्तव में यह  कोरी भ्रांतियां हैं, हम जितना चाहे उतना कैल्शियम प्राकृतिक स्त्रोतों से बढ़ा सकते हैं वह भी बहुत कम खर्च में बिना साइड इफेक्ट के। 
    • विकल्प- दूध, काजू, चना, चुना आदि।
  3. मल्टीविटामिंस : – इसकी पूर्ति के लिए आप पोषक आहार का सेवन करें इससे आपको कभी भी  कृत्रिम विटामिंस खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

महत्वपूर्ण नोट: – अनावश्यक दवा का सेवन ना करें क्योंकि गर्भावस्था आपके लिए और आपके शिशु के लिए बहुत नाजुक हो और महत्वपूर्ण अवस्था है यदि इस समय दवाओं का कोई दुष्प्रभाव हुआ तो वह काफी घातक हो सकता है। 

यदि बहुत ही आवश्यक ना हो तो ड्रिप ना लगवाए।

(DNS- Deviated Nasal Septum)(NS- Normal Saline)(RL- Ringer’s Lactate Solution)

क्योंकि यह आपके शरीर में ठंडक (कफ)बढ़ाएंगे। यह कफ आपके गर्भाशय को शुद्ध नहीं होने देगी और यह शुद्धता आपके रक्त में मिलकर आपको भविष्य में कई रोगों से गिर सकती है जिसमें प्रमुख हैं:-

  • आमवात – Rheumatoid Artheritis
  • थायराइड की समस्या,
  • गर्भाशय में  गठान या फाइब्रॉयड होना आदि।

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